District KABIRDHAM : जिला कबीरधाम

 District KABIRDHAM :  जिला कबीरधाम

जिला कबीरधाम

जिला कबीरधाम सकरी नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक शांतिपूर्ण और आकर्षक स्थान है। कबीर साहेब के आगमन और उनके शिष्य धर्मदास के वंशज की गददी स्थापना के कारण इसका नाम कबीरधाम पड़ा। जो कबीरधाम के रूप में जाना जाता है। राजनांदगांव जिले से कवर्धा तहसील तथा बिलासपुर जिले से पंडरिया तहसील को अपवर्जित कर तत्कालीन मध्यप्रदेश शासन के अधिसूचना राजपत्र (असाधारण) 2 जुलाई 1998 द्वारा एक नये जिले का गठन कर कवर्धा को मुख्यालय नियत किया गया और शासन की उपर्युक्त अधिसूचना के अनुसार 6 जुलाई 1998 से कवर्धा जिला अस्तित्व में आया। तत्पश्चात छत्तीसगढ़ शासन के अधिसूचना दिनांक 10 मार्च 2003 द्वारा कवर्धा जिले का नाम बदल कर कबीरधाम किया गया।

कबीरधाम जिले का क्षेत्रफल 4447.05 वर्ग किलोमीटर है एवं कुल आबादी 8,22,526 है जिसमें अनुसूचित जाति-1,19,798, अनुसूचित जनजाति 1,67,043 तथा 5,35,685 अन्य जाति वर्ग के लोग निवास करते है (जनगणना 2011 के अनुसार)। राजधानी रायपुर से 120 किलोमीटर दूर स्थित कवर्धा जिला कबीरधाम, मध्यप्रदेश के डिंडोरी, मंडला छत्तीसगढ़ के मुंगेली, बेमेतरा तथा राजनांदगांव जिले को स्पर्श करता है। कबीरधाम जिले में 07 तहसीलें कवर्धा, पंडरिया, सहसपुर लोहारा, बोड़ला, रेंगाखार, कुण्डा और पिपरिया है। कबीरधाम जिले में 4 विकासखंड कवर्धा, पंडरिया, सहसपुर लोहारा और बोड़ला है। जिला दो महत्वपूर्ण बेसीन का भाग है। प्रथम महानदी बेसीन जिसमें सकरी, फोक, हाफ, आगर, उतानी एवं मुचकुंदा आदि नदियाँ जिले में प्रवाहित होती हैं, जो आगे चलकर शिवनाथ नदी में मिल जाती है दूसरा नर्मदा बेसीन जिसमें बंजर एवं जमुनिया नदी बहती है। 

ऐतहासिक, पुरातात्विक और जन आस्था के केन्द्र छत्तीसगढ़ का खजुराहों भोरमदेव मंदिर कवर्धा से महज 18 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम चौरा में स्थित है। कबीरधाम जिला वर्तमान में दुर्ग संभाग में आता है। कबीरधाम जिले की प्रमुख नदी संकरी है, जो मैकल पहाड़ों से निकलकर मैदानां मे बहती है। ऐतिहासिक, पुरातात्विक, धार्मिक व प्राकृतिक महत्व के दर्शनीय स्थलों में पर्यटन सुविधाओं के विकास से कबीरधाम जिले पर्यटको का पंसदीदा जगह है। चिल्फी के पास स्थित सरोदा दादर में रिसार्ट का निर्माण कराया गया है। प्रदेश का प्रथम सहकारी शक्कर कारखाना ग्राम राम्हेपुर कवर्धा में ही संचालित है। इसके साथ ही लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल शक्कर कारखाना जिले के ग्राम बिसेसरा पंडरिया में स्थापित है। कबीरधाम जिले मे प्राकृतिक संपदा बाक्साईट व लौह अयस्क का प्रचुर भंडार विद्यमान है। 

जिले में सिंचाई के लिए सरोदा, सुतियापाट, छीरपानी, बहेराखार, घोघरा एवं कर्रानाला जलाशय का निर्माण किया गया है। यहां की जलवायु समशीतोष्ण है किन्तु मैकल पर्वत का उपत्यका में अवस्थित चिल्फीघाटी के सुरम्य वादियां में शीतऋतु में अत्यधिक ठंड पड़ने के कारण ओस की बूंदे बर्फ बन जाती है। पीड़ाघाट प्राकृतिक सौन्दर्य युक्त पर्यटन स्थल है। रानीदहरा, दुरदुरी जलप्रपात का मनोरम दृष्य पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। मध्यप्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान से सटा हुआ भोरमदेव अभ्यारण के माध्यम से प्रकृति प्रेमी पर्यटक, जगंली पशु, पक्षियों को उनके नैसर्गिक वातारण में स्च्छन्द विचरण करते हुए देख सकते हैं। कान्हा टाईगर रिजर्व का एक हिस्सा कवर्धा स्थित भोरमदेव वन अभ्यारण्य में हैं।

District KABIRDHAM MAP

भोरमदेव मंदिर, कवर्धा

भोरमदेव छत्तीसगढ़ के कबीरधाम ज़िले में कवर्धा से 18 कि.मी. दूर तथा रायपुर से 125 कि.मी. दूर चौरागाँव में एक हजार वर्ष पुराना मंदिर है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर कृत्रिमतापूर्वक पर्वत शृंखला के बीच स्थित है, यह लगभग 7 से 11 वीं शताब्दी तक की अवधि में बनाया गया था। यहाँ मंदिर में खजुराहो मंदिर की झलक दिखाई देती है, इसलिए इस मंदिर को “छत्तीसगढ़ का खजुराहो” भी कहा जाता है।

मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर नागर शैली का एक सुन्दर उदाहरण है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर एक पाँच फुट ऊंचे चबुतरे पर बनाया गया है। तीनों प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर के मंडप में प्रवेश किया जा सकता है। मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंबे हैं तथा किनारे की ओर 12 खम्बे हैं, जिन्होंने मंडप की छत को संभाल रखा है। सभी खंबे बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक हैं। प्रत्येक खंबे पर कीचन बना हुआ है, जो कि छत का भार संभाले हुए है।

भोरमदेव मंदिर,कवर्धा

भोरमदेव अभ्यारण

भोरमदेव अभयारण्य मैकल की हरियर वादियों में फैला हुआ है। 352 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में विस्तारित यह अभ्यारण अपने में अनेक प्राकृतिक एवं प्रागैतिहासिक विशेषताओं को समेटे हुए है। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान और अचानकमार टाइगररिजर्व दोनों के संरक्षण को भी सम्पूर्ण प्रदान करता है |

भोरमदेव अभयारण्य वर्ष 2001 में अधिसूचना हुआ। तब नए राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का गठन हुआ था। चिल्फी घाटी के साथ ही कान्हा नेशनल पार्क का भी एक बढ़ा बफर जोन नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य में आ गया। चूँकि भोरमदेव और चिल्फी का यह क्षेत्रकान्हा नेशनल पार्क और अचानकमार के बीच पहले से ही एक कारीडोर के रूप में था। वन्यप्राणी की आवाजाही इधर से ही होती रही है। इसलिए वन्य प्राणियों की प्रजातियों में भी स्वाभाविक रूप से समानता पायी जाती है। इसका नामकरण भी यहाँ छत्तीसगढ़ का खजुराहो नाम से प्रतिष्टित भोरमदेव मंदिर के नाम पर ही अधिसूचित किया गया ।

भोरमदेव मंदिर अभयारण्य का विस्तार 800 53′ पूर्वी अक्षांश से 810 10′ अक्षांश और 210 54′ उत्तरी देशान्तर से 220 15′ के बीच है। उत्तर में इसका विस्तार डिंडौरी जिला की दक्षिणी सीमा तक है तो दक्षिण में मण्डलाकोंन्हा गाँव की उत्तरी सीमाओं को छूती है। इसीतरह पालक गाँव से छपरी गाँव की पश्चिमी सीमा अभ्यारण्य की पूर्वी सीमा होती है, तो पश्चिम में यह अभयारण्य कान्हा राष्ट्रीय उद्यान की पूर्वी सीमा पर स्थित बालाघाट जिले के पाचवा गाँव तक विस्तारित है।

हरियाली ,भोरमदेव अभ्यारण






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