दाउ मंदराजी_छत्तीसगढ़ी नाचा के जनक और नाचा के भीष्म पितामह

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दाउ मंदराजी (MANDRAJI)

दाउ मंदराजी (MANDRAJI)

दौलत तो कमाती है, दुनिया नाम कमाना मुश्किल है। अकसर यह गीत दुलार सिंह साव गाया करते थे। जिन्हें हम दाउ मंदराजी के नाम से जानते हैं। मंदराजी छत्तीसगढ़ी नाचा के जनक और नाचा के भीष्म पितामह माने जाते है। जिन्होंने छत्तीसगढ़ की पहली संगठित नाचा पार्टी बनाई। दाउ मंदराजी ने जीवन भर छत्तीसगढ़ी लोकनाट्य नाचा के लिए अपनी दौलत को लुटाते हुए सिर्फ नाम ही कमाया। 
तो आइए जानते है दोस्तों दाउ दुलार सिंह साव याने की दाउ मंदराजी की पूरी कहानी। मंदराजी का जन्म 1 अप्रैल 1911 को राजनांदगांव जिले के ग्राम रवेली में हुआ था। कहा जाता है कि बचपन में उनके हंसमुख स्वभाव के कारण उनके नानाजी उन्हें मद्रासी कह कर पुकारा करते थे। यही मद्रासी नाम आगे चलकर मंदराजी हो गया। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव के ही स्कूल से पूरी की। वे बचपन से गांव के लोक कलाकारों के संपर्क में आ गये थे और अपना पूरा समय गीत-संगीत और नाचा में देने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए।
मंदराजी गांव मंे होने वाले सभी धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया करते थे। कला के प्रति उनकी यह रूचि  उनके पिता दाउ रामाधीन सिंह साव को बिल्कुल भी पसंद नहीं था। उनकी इस रूचि को बदलने के लिए उनके पिताजी ने उनकी शादी 24 साल की उम्र में मोथली तिरगा गांव की राम्हिन बाई से करा दी। लेकिन उनका यह प्रयास असफल रहा और वह कला के प्रति ही समर्पित रहें। 
उन्होंने 1927-28 में कलाकारों को संगठित कर छत्तीसगढ़ की पहली संगठित नाचा पार्टी रवेली नाचा पार्टी बनाई। 1940 से 1952 तक रवेली नाचा पार्टी का स्वर्ग युग माना जाता हैं। यह पार्टी समूचे छत्तीसगढ़ में धूम मचा दी थी। मंदराजी ने रवेली नाचा पार्टी में अपने गम्मत के माध्यम से सामाजिक बुराईयों को समाज के सामने उजागर किया। इसके साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय गीतों को नाचा में शामिल कर अंग्रेजों के खिलाफ जनजागरण का प्रयास भी किया। मंदराजी ने नाचा में कई महत्वपूर्ण बदलाव भी किए। उन्होंने चिकारा की जगह हारमोनियम और मशाल की जगह गैस बत्ती की शुरूआत की। 
1951-52 में भिलाई के ग्राम रिगनी नाचा पार्टी भी अपने प्रसिद्ध के शिखर पर पहुंच चुकी थी। तक समूचे छत्तीसगढ़ में सिर्फ रवेली और रिगनी नाचा पार्टी का डंका बज रहा था। 1952 में ग्राम पिनकापार में आयोजित मंडई में इन दोनों नाचा पार्टियों का विलय हो गया। बाद में रिगनी -रवेली नाचा पार्टी के कलाकार पैसे की लालच और कुछ बेहतर करने की तलाश में धीरे-धीरे बिखते चले गये। लेकिन दाउ मंदराजी अपनी अंतिम सांसो तक नाचा के लिए अपना सब कुछ लुटाते रहे। लेकिन जीवन का आखिरी पहर गुमनामी और गरीबी में गुजारते हुए 24 सितम्बर 1984 को नाचा के इस महान सर्जक और हजारों लोककलाकारों के प्रेरणास्त्रोत ने अंतिम सांस ली। 
दोस्तों दाउ मंदराजी के जीवन पर छत्तीसगढ़ की पहली बायोपीक फिल्म मंदराजी बनाई गई है। जिसमें मंदराजी का किरदार छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध अभिनेता करण खान ने निभाई है। 


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