तीजन बाई
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दोस्तों पंडवानी छत्तीसगढ़ की एकल नाट्य लोक गीत है। जिसका अर्थ है पांडवों की वाणी, जो महाभारत की कथा पर आधारित होती है। पंडवानी में दो शैलियां होती है- कापालिक शैली और वेदमती शैली। जहां वेदमती शैली में कलाकार बैठकर पंडवानी गाया करते है। वहीं कापालिक शैली में कलाकार खड़े होकर पंडवानी गाते है। पंडवानी को देश के साथ विदेशों में पहचान दिलाने में छत्तीसगढ़ के पंडवानी लोककला कलाकारों का विशेष योगदान रहा है और इनमें से एक है, पंडवानी कापालिक शैली की पहली महिला कलाकार तीजन बाई। तो आइए जानते है दोस्तों पंडवानी के इस महान कलाकार की पूरी कहानी।
तीजन बाई का जन्म 24 अप्रैल 1956 को भिलाई के ग्राम गनियारी में एक गरीब परिवार हुआ था। उनके पिता का नाम हुनुकलाल परधा और मां का नाम सुखवती परधा था। तीजनबाई अपने माता-पिता की पांच संतानों में सबसे बड़ी थीं। बचपन में वे अपने नानाजी ब्रजलाल को महाभारत की कहानियां गाते व सुनाते हुए देखा करती थी। धीरे-धीरे उन्हें ये कहानियां याद होने लगीं। वह छिप-छिपकर इसे गाने के अभ्यास करतीं। लेकिन उस समय समाज में किसी लड़की को पंडवानी का गाना अच्छा नहीं समझा जाता था। जिसके कारण उन्हें परिवार विरोध का भी सामना करना पड़ा। महज 12 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई थी। उनके ससुराल वालों को भी यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि कोई औरत पंडवानी गाएं। जिसके कारण उन्हें घर और समाज से बाहर कर दिया गया। लेकिन उन्होंने उस छोटी उम्र में सहास का परिचय देते हुए अपने पति से अलग होकर एक झोंपड़ी बनाकर रहने लगी। महज 13 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन दुर्ग जिले के चंद्रखुरी गांव किया था। हालांकि उस दौर में खुले मंच पर लड़कियों के प्रदर्शन के लिहाज से काफी मुश्किल था। लोग उनका मजाक उड़ाते और उन पर तरह-तरह की की बातें किया करते थे। लेकिन तीजन बाई ने इन बातों पर ध्यान न देते हुए अपने पंडवानी गायन को जारी रखा और धीरे-धीरे उनके पंडवानी गायन का अंदाज को लोकप्रियता मिलने लगी।
उनकी इस प्रतिभा को प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर ने देखा व सुना और उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने अपनी कला का प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उन्हांेने फ्रांस, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, इटली, ब्रिटेन जैसे तमाम बड़े देशों में अपनी पंडवानी की प्रस्तुति दे चुकी हैं। 1988 में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम भारत एक भोज में भी अपनी प्रस्तुति दी है। तीजन बाई को पंडवानी में अपने योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा 1988 मंे पद्मश्री, 2003 मंे पद्मभूषण और 2019 में देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसके साथ ही वे कई पुरस्कार एवं सम्मान अपने नाम कर चुकी हैं।
वहीं उनके शिक्षा की बात करें तो लड़कियों पर सामाजिक पाबंदियां होने के कारण वे कभी स्कूल नहीं जा पायी। लेकिन साक्षरता अभियान के माध्यम से उन्होंने पांचवीं तक की पढ़ाई जरूर की है। इसके अलावा विभिन्न विश्वविद्यालयों ने उन्हें डीलीट की उपाधि से भी सम्मानित किया है।
उनके व्यक्तिगत जीवन की बात करे तो उनकी शादी 12 साल की उम्र में हो गई थी। लेकिन पंडवानी गाने के विरोध के चलते वह अपने पति से अलग हो गई। इसके बाद उन्होंने दो बार शादी की लेकिन उनका यह विवाह भी सफल नहीं हुआ। बाद में उन्होंने अपनी मंडली के हार्मोनियम कलाकार तुकका राम से प्रेम विवाह किया।
दोस्तों, जहां थोड़ी सी भी सफलता मिलने पर लोगों में घमंड आ जाता है। वहीं तीजन बाई सफलता के इस मुकाम पर पहंुचने के बाद भी अपनी उपलब्धियों पर जरा सा भी गुरूर न करते हुए एक सामान्य महिला की तरह जीवन व्यतित कर रही है।
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