Kishore Sahu Biography
किशोर साहू की जीवनी
छत्तीसगढ़ की माटी कई महान विभूतियों की जन्मस्थली रही है। जिन्होंने देश-विदेश में प्रदेश और देश का नाम रौशन किया। ऐसी ही एक महान विभूति हैं किशोर साहू जी। किशोर साहू हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता-निर्देशक तथा पटकथा लेखक थे। किशोर साहू को सामान्य रूप से एक बार में पहचानने के लिए गाईड फिल्म के मार्कों को याद किया जा सकता है। 1965 की सुपरहित फिल्म गाईड में किशोर साहू ने पुरात्तव वेदता और फिल्म की नायिका वहीदा रेहमान के पति मार्कों का किरदान निभाया था।
किशोर साहू का जन्म 22 अक्टूबर 1915 में छत्तीसगढ़ (ब्रिटिश भारत) के दुर्ग जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम कन्हैयालाल साहू एवं मां का नाम प्रेमावती साहू था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा राजनांदगांव के स्टेट हाई स्कूल एवं मनरो हाईस्कूल भंडारा से प्राप्त की तथा आगे की पढ़ाई के लिए नागपुर के मॉरिस कॉलेज में दाखिला ले लिया। किशोर साहू स्कूल के समय से ही नाटकों में हिस्सा लेने लगे थे। नाटकों की दुनिया में प्रवेश लेने के बाद उन्हें लगता था कि वे अभिनय करने के लिए ही बने है। नागपुर के मॉरिस कॉलेज में प्रवेश लेने के बाद वे नाटकों को इतनी गंभीरता से लेने लगे थे कि परीक्षा में पास होने लायक नंबर ही ला पाते थे। कॉलेज के दिनों में ही किशोर साहू ने लिखना शुरू कर दिया। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने दोस्तों की राय से मुंबई जाकर फिल्मों में भाग्य आजमायां। लेकिन दूसरे बहुत से लोगों की तरह उन्हें भी काम ढूंढने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा। इसी दौर में उनकी मुलाकात अशोक कुमार से हुई। अशोक कुमार किशोर साहू की प्रतिभा से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने बाम्बे टॉकिज के मालिक हिमांशु राय से किशोर साहू की सिफारिश की। हिमांशु राय ने उन्हें 1937 में प्रदर्शित फिल्म जीवन प्रभात में हीरो का रोल दे दिया। इस फिल्म में किशोर साहू की नायिका थी हिमांशु राय की पत्नी देविका रानी। किशोर साहू की यह पहली ही फिल्म हिट हो गई।
लेकिन किशोर साहू इस सफलता से संतुष्ट नहीं थे। वो कुछ ऐसा करना चाहते थे, जिससे उनके अंदर के कलाकार को संतुष्टि मिल सके। लेकिन किसी कलाकार की संतुष्टि के लिए कोई फिल्म निर्माता अपना पैसा क्यों लगायेगा ? उनके पास इतनी हैसियत भी नहीं थी की वे फिल्मों का निर्माण कर सकें। इस बात का अहसास किशोर साहू को जल्द हो गया और वे वापस नागपुर लौट आए। वापस लौटकर वे नाटकों और लेखन के काम में जुट गये। इसी बीच उनके एक लखपति व्यावसायी दोस्त उनसे मिलने पहुंचे। उन्होंने अपने दोस्त को अपने मन एवं अपनी समस्याओं के बारे में बताया। इसके बाद उन्होंने अपने दोस्त के साथ मिलकर द इंडिया आर्टिस्ट लिमिटेड नाम की फिल्म निर्माण संस्था बनाई। इस बैनर तले 1940 में बनने वाली पहली फिल्म थी बहुरानी। यह फिल्म अपने समय की अछूत विषय पर बेहद चर्चित और क्रांतिकारी फिल्म थीं। 1940 में ही पुनर्मिलन किशोर साहू की लगातार तीसरी सफल फिल्म रही। इसके बाद किशोर साहू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपनी फिल्म कंपनी आचार्य आर्ट प्रोडक्शन बनाई। इसके बैनर तले 1942 में बेहतरीन हास्य फिल्म कुंवारा बाप बनी। इस तरह किशोर साहू आजादी के पहले एक फिल्मकार के रूप में स्थापित हो चुके थे।
किशोर साहू के निर्देशन में 1948 में बनी फिल्म ’नदिया के पार’ ने हिन्दी फिल्मों में क्षेत्रीय भाषा के महत्व को स्थापित किया। इस फिल्म में किशोर साहू, दिलीप कुमार और कामिनी कौशल ने अभिनय किया। फिल्म के डॉयलाग उन्होंने खुद लिखे और उन्होंने इस फिल्म में छत्तीसगढ़ी बोली एवं छत्तीसगढ़ी वेशभूषा का भरपूर प्रयोग किया। इस फिल्म के लिए मोहम्मद रफी द्वारा गाया गया गीत- मोर राजा हो ले चल नदिया के पार... को हिन्दी सिनेमा का पहला भोजपुरी गीत कहा जा सकता है। किशोर साहू की 1954 में प्रदर्शित फिल्म मयूर पंख हिन्दी सिनेमा में विशेष स्थान रखती है, क्योंकि यह हिन्दुस्तान की पहली मेगा कलर फिल्म थी। इस फिल्म में फ्रांस की हिरोईन ने काम किया था और इसकी शुटिंग छत्तीसगढ़ से लगे मध्यप्रदेश के कान्हा -किसली के जंगलों में हुई थी। मयूर पंख कान फिल्म फेस्टिवल में आमंत्रित की जाने वाली भारत की पहली फिल्म थी। किशोर साहू कॉलेज के दिनों में शेक्सपीयर के नाटकों से काफी प्रभावित थे। उनकी शेक्सपियर के नाटक पर आधारित 1954 में प्रदर्शित फिल्म हेमलेट बहुत चर्चित रहीं। हेमलेट को वे अंतराष्ट्रीय ख्याति की फिल्म बनाने की पूरी कोशिश की। जिसके लिए वे लंदन भी गए। किशोर साहू ने इतिहास से प्रेरित होकर 1945 में सम्राट अशोक के पुत्र कुणाल पर आधारित फिल्म वीर कुणाल का निर्माण किया। जिसकी हिरोइन सोभना सामर्थ थी। इस फिल्म को उस समय के गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भी देखा। किशोर साहू को फिल्म इंडिया के सम्पादक बाबूराव पटेल ने आचार्य की पदवी से विभूषित किया। किशोर साहू को पुनर्मिलन की नायिका स्नेहप्रभा प्रधान से प्रेम हुआ और उन्होंने शादी कर ली। लेकिन उनका यह रिश्ता अधिक समय तक टिक न सका और साल भर बाद ही दोनों अलग हो गए। इसके बाद उन्होंने प्रीति साहू से शादी की। उनके दो बेटिया नैना साहू एवं ममता साहू तथा दो बेटे विक्रम साहू एवं रोहित साहू है। किशोर साहू सामाजिक विषय और प्रणय संबंधों की कहानियां पर आधारित फिल्में बनाने के लिए जाने जाते थे।
अभिनेता के रूप में उन्होंने जीवन प्रभात (1937), बहुरानी (1940), कुंवारा बाप (1942), राजा (1943), शरारत (1943), इंसान (1944), वीर कुणाल (1945), सिंदूर (1947), सावन आया रे (1949), नमूना (1949), काली घाटा (1951), बुजदील (1951), ज़लज़ाला (1952), सपना (1952), हमारी दुनिया (1952), मयूरपंख (1954), हैमलेट (1954), काला पानी (1958), लव इन शिमला (1960), काला बाजार (1960), पूनम की रात (1965), गाइड (1965), पुष्पांजली (1970), गैम्बलर (1971), हरे राम हरे कृष्णा (1971), वकील बाबू (1982) आदि फिल्मों में काम किया। इसके साथ ही उन्होंने कुंवारा बाप (1942), राजा (1943), शरारत (1944), वीर कुणाल (1945), सिंदूर (1947), साजन (1947), नदिया के पार (1948), सावन आया रे (1949), काली घाटा (1951), मयूरपंख (1954), हैमलेट (1954), किस्मत का खेल (1956), बडे़ सरकार (1957), दिल अपना और प्रीते पराई (1960), गृहस्थी (1963), घर बसाके देखो (1963), पूनम की रात (1965), हरे कांच की चुड़िया (1967), पुष्पांजली (1970), धुंए की लकीर (1974) फिल्मों का निर्देशन भी किया। साथ ही मयूरपंख (1954), दिल अपना और प्रीत पराई (1960), हरे कांच की चुड़िया (1967), औरत (1967) तथा तीन बहुरानीयां (1968) फिल्मों का संवाद/पटकथा/कहानी का लेखक उन्होंने किया। किशोर साहू जी बहुरानी (1940), सावन आया रे (1949), काली घाटा (1951), मयूरपंख (1954), पूनम की रात (1965), हरे कांच की चुड़िया (1967), पुष्पांजली (1970) फिल्मों के निर्माता भी रहे।
किशोर साहू ने 1937 से 1980 के बीच लगभग 27 फिल्मों में अभिनय किया। वे 7 फिल्मों के निर्माता, लगभग 20 फिल्मों के निर्देशक और 5 फिल्मों के संवाद/पटकथा/कहानी का लेखक भी किया। किशोर साहू जी का 22 अगस्त 1980 को 64 वर्ष की आयु में बैंकॉक थाईलैंड में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया और इस तरह हिन्दी सिनेमा के एक बेहतरीन युग का अंत भी।
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